जैसा कि हम सब जानते है कि आगरा में भी ताजमहल है ठीक इसी तरह भारत का एक और दूसरा ताजमहल जिसे बीबी का मकबरा कहा जाता है, यह महाराष्ट्र के औरंगाबाद में स्थित हैं, इस मकबरे को औरंगजेब के बेटे आजम शाह ने अपनी माँ की याद में बनवाया था। यह मकबरा अकबर और शाहजहाँ के समय शाही निर्माण से लेकर अंतिम मुगलों तक के साधारण वास्तुकला के परिवर्तन को दर्शाता है।
वहीं पहले यह वास्तु मुगल काल के दौरान औरंगाबाद शहर का मध्य हुआ करता था, हालांकि यह मुगल बादशाह औरंगजेब के निर्माण में प्रयोग किये हुए वास्तु में सर्वोत्तम है, वहीं बीबी का मकबरा औरंगजेब और उनके ऐतिहासिक शहरों का मुख्य केंद्र बिंदु था। इसका मुख्य आकर्षण मकबरे के मुख्य द्वार पर बनी समाधी से है, जिसे उस समय के इंजीनियर हंसपत राय उर्फ अत-उल्लाह ने किया था। अत-उल्लाह, उस्ताद अहमद लाहौरी का बेटा था, जिसने ताज महल को डिजाइन किया था।
बीबी के मकबरा का इतिहास- इतिहासकारों के अनुसार बीबी के मकबरे का निर्माण मुगल बादशाह औरंगजेब के पुत्र आजम शाह ने अपनी माँ दिलरस बानो बेगम की याद में बनवाया था, दिलरस बानो बेगम को राबिया-उद-दौरानी के नाम से भी जाना जाता था, इनका जन्म ईरान के सफवी राजवंश में हुआ था। इनके पिता मिर्जा बेडिज-जमान सफवी गुजरात के वायसरॉय थे, दिलरस बानो बेगम ने 8 मई सन् 1637 को राजकुमार मुगल-उद-दीन (औरंगजेब) से आगरा में विवाह कर लिया। दिलरस बानो उनकी पहली पत्नी थीं, साथ ही साथ औरंगजेब उन्हें अपने सभी सलाहकारो में सबसे मुख्य मानते थे। दिलरस ने पाँच बच्चों को जन्म दिया जिनका नाम- जेब-अन-निसा, जिंटा-अन-निसा, जुबदत-अन-निसा, मुहम्मद आजम शाह, सुल्तान मुहम्मद अकबर था, लेकिन वहीं अपने पाँचवें बेटे मुहम्मद अकबर को जन्म देने के बाद दिलरस बानो प्रसव में होने वाली समस्या के कारण प्रसुति ज्वार से पीड़ित हो गई जिससे 8 अक्टूबर सन् 1657 को उनकी मौत हो गई, उनकी मृत्यू से औरंगजेब बहत दुखी हो गया। गौरतबल दिलरस की बड़ी बेटी जेब-अन-निसा ने अपने नवजात भाई की देखभाल का जिम्मा उठाया, और तो और दिलरस बानो बेगम को उनकी मृत्यु के बाद उसी मकबरे में दफनाया गया था। बीबी का यह मकबरा मशहूर ताजमहल के लिए एक आकर्षक दृश्य है।
मकबरे का निर्माण व वास्तुकला- बीबी के मकबरे का निर्माण सन् 1651 से लेकर सन् 1661 तक चला, जिसमें करीब 6,68,203.7 रुपये की लागत लगी थी, यह मकबरा एक विशाल चारदीवारी में स्थित है, जो कि उत्तर-दक्षिण में 458 मीटर और पूर्व-पश्चिम में 275 मीटर है। वहीं विशिष्ट मुगल चारबाग पद्धति मकबरे की शोभा को बढ़ाता है, ठीक इसी प्रकार इसकी एकरूपता और उत्कृष्ट उद्यान से इसके सौंदर्य और भव्यता में चार चाँद लग जाते हैं। वहीं इसके चारदीवारी पर नुकीले भालादार काँटे भी लगाए गए हैं, साथ ही इसे और आकर्षक बनाने के लिए नियमित अंतरालों पर बुर्ज भी बनाए गए हैं। इस मकबरे का गुम्बद संगमरमर के पत्थर से बना हुआ है और दूसरा निर्माण प्लास्टर से किया गया है, और बात करें इस वास्तु के निर्माण में लगे पत्थर के बारे में जो कि जयपुर की खदानों से लाये गए थे।
हालांकि आजम शाह इस मकबरे को "ताजमहल” से भी अधिक सुन्दर बनाना चाहता थे लेकिन बादशाह औरंगजेब द्वारा दिए गए निर्माण खर्च से यह मुमकिन नहीं हो पाया, और इस मकबरे का गुम्बद ताजमहल के गुम्बद के आकार में छोटा है, लेकिन कुछ तकनीकियों की वजह से और संगमरमर की कमतरता की वजह से यह वास्तु कभी भी ताजमहल के बराबर नहीं समझी गयी।
वहीं रबिया-उल-दौरानी के मानवीय अवशेष जो कि भूतल के नीचे रखे गए हैं, यह अत्यंत सुंदर डिजाइनों वाले एक अष्टकोणीय संगमरमर के आवरण से घिरा हुआ है, इसके पास सीढियों से उतर कर जाया जाता है। मकबरे के भूतल की छत को अष्टकोणीय विवर द्वारा वेधा गया है और नीची सुरक्षा के रूप में संगमरमर का आवरण बनाया गया है या कहा जा सकता है कि अष्टकोणीय विवर से नीचे की ओर देखने पर भूतल से कब्र को देखा जा सकता है। साथ ही कहा जाता है कि मकबरे के पश्चिम में एक छोटी मस्जिद भी है, जो बाद में बनी है हालांकि इस मस्जिद को लेकर वर्तमान समय में विवादों और सुरक्षा के चलते नमाज अदा नही की जाती है।
जब हम इस मकबरे के मुख्य दरवाजे से अंदर जायेंगे तो मानो मुगलिय शैली की बनावट का अनुभव होता हैं साथ ही मगलिय शैली की इस वास्तुकला में पानी एवं सुंदर बगानों की भी अहम भूमिका है। इसके सुन्दर बगानों के मध्य एक लम्बे कोण का तालाब भी है जिसमें अनेक भव्य फव्वारे भी लगे हए हैं, वहीं मकबरे के मुख्य दरवाजे से लेकर मकबरे के रास्ते तक दोनों ओर एक 6 फिट ऊँची जालीदार दीवार है जो ताजमहल में नही पाई जाती है। दरअसल इस मकबरे को गरीबों का मकबरा भी कहा जाता है।
नमाज की इजाजत- इतिहासकारों के अनुसार मुगल के अंतिम बादशाह बहादुर शाह जफर का परपोता होने का दावा करने वाले शहजादा याकूब हबीबुद्दीन तूसी ने महाराष्ट्र के औरंगाबाद स्थित ऐतिहासिक बीबी के मकबरे में नियमित रूप से नमाज की इजाजत माँगी, इस बात पर तूसी ने कहा कि मकबरा परिसर में स्थित यह मस्जिद बंद है और यहाँ नमाज की इजाजत नही है और यह संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार के खिलाफ है। तभी मकबरे के संरक्षक तूसी ने कहा, अगर ऐतिहासिक ताजमहल में पूरे साल नमाज की इजाजत है तो ताजमहल की नकल, इस मकबरे में क्यों नहीं, और आगे कहा कि बीबी का मकबरा मुगल बादशाह औरंगजेब के बेटे आजम शाह ने सन् 1660 में अपनी माँ दिलरस बानो बेगम की याद में बनवाया था। वहीं तूसी ने कहा कि उन्होंने नमाज की माँग करते हुए इस सिलसिले का एक ज्ञापन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीक्षक को सौंपा है और कहा, कम से कम तीन बार नमाज की इजाजत दी जा सकती है।