छतरपुर मंदिर भव्य हिन्दु मन्दिर है जो मां दुर्गा यानि देवी कात्यायनी को समर्पित है, जो कि दक्षिण दिल्ली के गुड़गांव और महरौली मार्ग के निकट छतरपुर में स्थित है। यह मन्दिर कुतुब मीनार से सिर्फ 4 किमी की दूरी पर स्थित है। इस मन्दिर का शिलान्यास सन् 1974 में किया गया था। कहा जाता है कि इस मन्दिर की स्थापना कर्नाटक के बाबा नागपाल जी ने की थी जो कि एक सन्त थे। इनकी मृत्यु 1998 में हुई थी। तो आइये बताते है आपको इस मंदिर से जुडी अद्भुत और आश्चर्यचकित करने वाली कहानी के बारे में-
मां दुर्गा का यह मन्दिर साल में सिर्फ दो बार नवरात्री में खोला जाता है। उस समय यहां हजारों की भीड़ में बहुत से भक्त मां दुर्गा के दर्शन के लिए आते है। यदि यहां के एक कमरे में चांदी से बनी हुई कुर्सिया और टेबल है तो दूसरे कमरे में जिसे हम सब शयन कहते है उसमे बिस्तर, ड्रेसिंग टेबल और चांदी से नक्काशी किये हुए टेबल देखने को मिलते है। यहां जब भी कोई बड़ा सत्संग का आयोजन किया जाता है तभी ये दोनो कमरे खोले जाते है। मंदिर परिसर के प्रवेश द्वार पर एक पुराना पेड़ है जिस पर लोग अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए पवित्र धागा और चूडियां बांधते है।
यहाँ पर माँ कात्यायनी मंदिर के साथ-साथ कई मन्दिर है जैसे शिव मंदिर, राम मंदिर, माँ महिषासुरमर्दिनी मंदिर, माँ अष्टभुजी मंदिर, झपीर मंदिर, मार्कंडेय मंदिर, बाबा की समाधी, नागेश्वर मंदिर, त्रिशूल है। और तो और 101 फीट की हनुमान मूर्ति जो कि भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करती है। मंदिरों के अलावा और भी कई बड़ी ईमारतें है जहां हर रोज भंडारा होता है। लगभग पुरे 24 घंटे यहापर कुछ ना कुछ धार्मिक प्रार्थनाये की जाती है।
कात्यायनी मन्दिर में नवरात्री, महाशिवरात्रि और जन्माष्टमी जैसे शुभ अवसर पर लाखों की भीड़ में भक्त दर्शन करने आते है। नवरात्री के समय यहां पर लाखों लोगो को लंगर प्रसाद के रूप में बांटा जाता है, इन दिनों यहां का दृश्य देखने लायक होता है जो कि बहुत सुन्दर होता है। कथाओं के अनुसार वास्तुकला की दृष्टि से छतरपुर का मंदिर एक अद्भुत मंदिर है क्यों की इस मंदिर के पत्थर कवितायें दर्शाते है। कहा जाता है कि 2005 में दिल्ली में जब अक्षरधाम मंदिर बना था उससे पहले छतरपुर का कात्यायनी मंदिर भारत का सबसे बड़ा और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर था। यह मंदिर पूरी तरह संगमरमर से बना है, इस मन्दिर की सभी जगहों पर जाली का काम है। ऐसी वास्तुकला को वेसारा वास्तुकला कहा जाता है।
इस मंदिर परिसर की सभी इमारते विभिन्न तरह की वस्तुओ से बनी है। मन्दिर परिसर में सुन्दर बाग और लॉन बने है जिसको देखकर सभी भक्तों को शांति मिलती हैमंदिर में किये गए नक्काशी का काम काफी प्रशंसनीय है। कात्यायनी देवी की मूर्ति को एक बड़े से भवन में स्थापित किया गया है, देवी कात्यायनी की मूर्ति भव्य कपडों से, सोने से और सुन्दर फूलो के हार से सजी हुयी है। नवरात्रि के दिनोंयहां लाखों की भीड़ होती है, इस भीड़ को नियंत्रित करने के लिए उन्हें एक कतार में खड़ा किया जाता है। और इस कतार को नियंत्रित करने के लिए सुरक्षा रक्षक भी तैनात किये जाते है।
वैसे तो कात्यायनी मंदिर की कई विशेषताए है लेकिन सबसे खास बात यह है की इस मंदिर में बाहर जाने का रास्ता ही नहीं नजर आता है जो भी इस मन्दिर परिसर में एक बार प्रवेश कर लेता है वो मंदिर में चारो ओर घूमता ही रहता है। पता ही नहीं चलता की मंदिर में कहां से प्रवेश किया था और बाहर जाने का रास्ता कहा से है। यह मन्दिर अलग तरीके से बना है। मानों जैसे मन्दिर की हर दिशा में अन्दर जाने का ही रास्ता है और बाहर जाने का कोई निशान ही नहीं है।